शोर्ट वेव रेडियो. Short wave Radio

रेडियो – RADIO

चलिए , आज बात करते है – रेडिओ की . १९६० -७० का जमाना . लकड़ी की कबिनेट वाला रेडिओ , स्पीकर के आगे नाइलोन का पर्दा लगा रेडिओ. पीछे से झाँकने पर जल बुझ , जल बुझ वाला रेडिओ और सामने कांच पर दुनिया भर के स्टेशनों के नाम लिखा रेडिओ. छत पर दो बांसों के बीच ५ -६ फीट लम्बा , ३-४ इंच चौड़ा जाली नुमा एंटीना बांध , एक तार से जोड़े जाने पर चलने वाला रेडिओ .

पूछना जायज़ है – किस ज़माने की बात ले के बैठ गए ? तो भैया एक तो उस ज़माने में यही एकमात्र उपकरण था घर में जो टेक्नोलॉजी और इलोक्त्रोनिक्स का आभास दिलाता था और दूसरे ४० – ५० साल बाद इस टेक्नोलॉजी के अभूत पूर्व विकास क्रम पर निगाह डालना अपने आप में सिर्फ इतिहास का अवलोकन ही नहीं , निरंतर महसूस होते बदलाव की भी एक कहानी है. तो चलिए कुछ बाते करते हैं , उस अहसास की.

जलते बुझते ‘वाल्व ‘ सालिड स्टेट डायोड ,ट्रांसिस्टर में बदल गये . वो जालीदार ताम्बे का एंटीना कब में खींच कर लम्बी की जा सकने वाली डंडी में बदल गया , पता ही न चला . सब कुछ समा गया एक छोटे से प्लास्टिक के डब्बे में .

काफी इस्तमाल होता था – विविध भारती के विविध कार्यक्रम –   गीत संगीत तो था ही , दोपहर की झलकियों का तो आनंद कुछ और ही था. ‘सांतवें आसमान की सैर ‘ का डायलोग ‘ अबे आ रिया , ना जा रिय्या   , खड़ा खड़ा चिल्ला रिया. अबे दम तो ले छुरी तले ‘ . गाहे बगाहे आज भी ज़बान पर आ ही जाता है. समाचारों का मतलब था सुभह , दोपहर और रात के रेडिओ समाचार.

शोर्ट वेव ने मुझे हमेशा रोमांचित किया. जादू बिलकुल विशुद्ध जादू .रेडिओ सिलोन ( श्रीलंका ) पर अमीन सयानी , जसदेव सिंह की हाकी कमेंट्री और बी. बी.सी. पर रत्नाकर प्रभाकर – अविश्वसनीय , अतुलनीय जादुई आवाजें – जादूई डब्बे में.

सुई घुमाते जाओ – दुनिया भर के स्टेशन , दुनिया भर की भाषाएँ , दुनिया भर का संगीत. करीब करीब आधा घंटा तो सुनना पड़ता था स्टेशन , चाहे कुछ समझ न आये – सिर्फ ये जानने को की आखिर ये जगह है कौन सी ? समझ पाए तो ठीक, नही तो गयी भैंस पानी में.

हर तीसरा चौथा स्टेशन तो रुसी भाषा का ही मिलता था. बहुत सारे देश हिंदी में भी प्रसारण करते थे. हर प्रसारण की अपनी विशेषता : ‘ वौइस् आफ अमेरिका ‘ के हर प्रसारण में ‘ अमेरिकन सरकार के प्रवक्ता के अनुसार …’ का पुछल्ला हमेशा लगा रहता . चाइना रेडिओ की हिंदी तो अभी एक दो साल पहले ही सुधरी है . काफी समय तक उनका w को दबरू बोलना मजेदार लगता था. बी.बी.सी. और दौचेववेल्ले ( जर्मनी ) समाचार व् विवेचनाओं में अव्वल दर्जे के थे . रुसी और जापानी प्रसारण काफी आत्मकेंद्रित स्वभाव के थे और आज भी वैसे ही हैं . और हाँ , रेडिओ पाकिस्तान भी खूब सुना , मीडियम और शोर्ट वेव दोनों पर . रेडिओ पाकिस्तान पर सुने कई गाने ,बरसों बाद हिंदी फिल्मों में भी गाये गये .

मेरे आलावा अधिकतर लोगों के लिए तो शोर्ट वेव सुनना एक बावलेपन से अधिक कुछ न रहा. मेरे लिए तो यह आज भी जादू ही है.

सुभह सुभह थोड़ी बहुत बागवानी , थोड़ी बहुत कसरत करते हुए ट्रांसिस्टर रेडियो पर दुनिया भर के स्टेशनों को सुनने का आन्नद ही कुछ और था. ज्यों ज्यों दिन बड़ता , सूरज आसमान में चड़ता स्टेशन अपने आप खिसक लेते. फिर सुई थोड़ी अगल बगल सरकाओ , और वही स्टेशन फिर गिरफ्त में.

इलाहाबाद   इन्जिनीरिंग कॉलेज के हॉस्टल में किट मंगवाया , दिल्ली से , पैसे मनी आर्डर से भेजे थे . एक नीले से केबनेट के साथ अपना रेडिओ ट्रांसिस्टर अस्सेम्ब्ल किया और फिर चालू हो गए शोर्ट वेव पर . तो सन १९७५ में भी बगैर इबे , एमाजोंन के भी सिस्टम वही था , बस समय थोड़ा अधिक लगता था और समय की कोई कमी थी नहीं और ना आज है , बस उतना ही तो है.

दिल्ली आने पर कार मे रेडिओ लगवाया शोर्ट वेव . ट्राफीक जैम अच्छे लगने लगे . नये नए ढेर सारे स्टेशन खोजे इस दौरान. चूँकि हर दूसरा तीसरा स्टेशन रुसी ही होता था तो रुसी सीखने का प्रयास चालू हो गया . आज कल हर दूसरा तीसरा स्टेशन चीनी भाषा का हो गया है – इसे ना सीखने वाला.

बी. बी. सी . और जर्मन रेडिओ दौचेवेले के हिंदी प्रसारणों का तो कोई मुकाबला ही नही था . रेडियो जापान से जापान की जानकारियाँ हीं नहीं वहां की लोक कथाओं का भी खूब आनन्द लिया., सऊदी अरब रेडिओ से कुरान की आयतों का अर्थ – क्या क्या नहीं पाया .

डिज़िटल रेडिओ आने के बाद वो सुई खिसकाने वाली समस्या तो दूर हो गई और साइज़ भी काफी छोटा हो गया – जेब में आने लायक . खींच कर लम्बा किये जाने वाले एंटीना की समस्या बनी रही , सुबह घूमने जाने पर – रेडिओ जेब में , हेड फोन कान में और जेब से बाहर एंटीना की डंडी – अजीब लगता था . सो ताम्बे का एक तार कमर पर लपेट एंटीना से बांध उपर से टी शर्ट पहन निकल पड़े – शोर्ट वेव जिंदाबाद.

पर अब तक ढेर सारी समस्याएं और आ गईं . सबसे पहले तो ‘वायस आफ अमेरिका ‘ को अक्ल आई के क्यूँ हिंदी में प्रसारण किये जा रहे हो ? सो ३० सितम्बर २००८ से बंद कर दिया ( उर्दू में जारी रखा – काफी साल बाद तक ). अब जब अमेरिकन आका ने ऐसा किया तो बाकि क्यूँ पीछे रहते ? २०११ में दौचेवेले ने भी हाथ जोड़ लिए . २७ मार्च २०११ को बीबीसी ने भी हिंदी प्रसारण बंद करने की घोषणा कर दी . सब का एक ही रोना था की पैसे नहीं हैं. उर्दू के कार्यक्रम सबने बदस्तूर जारी रखे – शायद ये बगेर पैसे – फ्री में ही चलते होंगे . खैर बी.बी.सी. ने बाद में शुरू रखने का फैसला लिया और आज तक हिंदी प्रसारण चालू आहे . सुबह 8 बजे का प्रसारण कपड़े प्रेस करते हुए सुन लिया करता था – बी.बी.सी. वालों को पता लग गया – प्रसारण ही बंद कर दिया. मैंने भी सुनना छोड़ दिया . लगा मैं जबरदस्ती ही इनके गले पड़ रहां हूँ – कार्यक्रमों का स्तर भी काफी गिर चुका था .

अब जो फरवरी में नई कार ली उसमे रेडिओ नहीं बदलवाया – फालतू के से ऍफ़ एम् स्टेशन सुनने को अभिशप्त हो गया – सहा नही गया . सो रेडिओ को टाटा बाए बाए . यू .एस बी . में जर्मन भाषा के लेसन डाऊनलोड करके सुनता हूँ. इससे पहले वाली कार में कम्पनी का रेडिओ निकलवा के शोर्ट वेव रेडिओ लगवा लिया था – ऑफिस जाते हुए चाइना रेडिओ पर जर्मन में प्रसारण सुनते हुए ट्राफिक जेम्स का आनन्द ही कुछ और था.

सांझी बात है तो २७ मार्च २०११ की एक रिकॉर्डिंग साझा करता हूँ – बी.बी. सी पर सुनी थी . आज भी अच्छी लगती है :

 

 

 

1 thought on “शोर्ट वेव रेडियो. Short wave Radio

  1. Preeti

    Very beautifully written ……Radio garden download kia ja sakta hai and world ke radio station sune ja sakte hai…

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